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शिंदे की हुई शिवसेना, न घर के रहे न घाट के उद्धव ठाकरे

  • निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद उद्धव गुट बैचेन, लगाए सौदेबाजी के आरोप
  • संजय राउत बोले-2000 करोड़ में हुआ है शिवसेना का नाम निशान खरीदने का सौदा

मुंबई। शिवसेना यानि ठाकरे। पहले बालासाहब ठाकरे और उनके बाद उद्धव ठाकरे और उनके उत्तराधिकारी आदित्य ठाकरे। एक समय था जब महाराष्ट्र में शिवसेना की तूती बोलती थी। बालासाहब ठाकरे के कहे शब्द अंतिम होते थे। ठाकरे हिंदू हृदय सम्राट कहलाते थे। भाजपा भी उनके समय पिछलग्गू पार्टी ही बनकर रह गई थी। करार भी हुआ था कि लोकसभा में बीजेपी ज्यादा सीटों पर लड़ेगी और विधानसभा में भाजपा से ज्यादा सीटें शिवसेना लड़ेगी। लेकिन जैसे ही बालासाहब इस दुनिया से गए, सबकुछ बदल गया। उद्धव ठाकरे शिवसेना को संभाल नहीं पाए। वे बीजेपी का दामन छोड़कर कांग्रेस-राकांपा के साथ चले गए। भले ही डेढ़-दो साल तक वे सीएम बने रहे, लेकिन अब अपनी पार्टी से ही हाथ धो बैठे हैं।
एकनाथ शिंदे और भाजपा ने तोड़ा वर्चस्व
जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने तभी से भाजपा शिवसेना में सेंध लगाने की जुगत में थी। पहले तो उसने मनसे प्रमुख राज ठाकरे को साधा, लेकिन जब लगा कि इससे भी काम नहीं होगा, तो शिवसेना में सेंध लगा दी। एकनाथ शिंदे बागी हुए तो अपने साथ 40 से ज्यादा विधायक और करीब 15 सांसद ले उड़े। बस फिर क्या था, बीजेपी ने गठबंधन कर सरकार बना ली। शिवसेना में वर्चस्व के लिए मामला कोर्ट और निर्वाचन आयोग तक पहुंचा।
शिवसेना में शिंदे का 75 प्रतिशत कब्जा पाया
निर्वाचन आयोग ने पाया कि 75 प्रतिशत विधायक और सांसद शिंदे गुट के साथ हैं, तो पार्टी को शिंदे के हवाले कर दिया। बहरहाल उद्धव ठाकरे की स्थिति अब न घर के रही न घाट की। जिस शिवसेना को उन्होंने बचपन से देखा, अब वह उनकी नहीं रही। जिस तीर-कमान निशान के सहारे वे सीएम बने, अब वह भी उनका नहीं रहा।
कितने शिवसैनिक उनके साथ होंगे, कांग्रेस-राकांपा साथ देंगे या नहीं?
संपत्ति भी हाथ से जाने का खतरा है। ऐसे में अब वे मशाल चुनाव चिन्ह के सहारे चुनाव मैदान में कूदने की तैयारी में हैं। लेकिन पता नहीं कितने शिवसैनिक उनके साथ होंगे, राकांपा-कांग्रेस उन्हें तवज्जो देंगे या नहीं। अभी तो संजय राउत सौदेबाजी का आरोप लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि शिवसेना का नाम निशान खरीदने का सौदा 2000 करोड़ में हुआ है।

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