दिल्ली। 2013 की बात है, जब केंद्र में मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए की सरकार थी। घपले-घोटालों के शोर में सरकार के अच्छे काम पूरी तरह दब चुके थे। हर तरफ एक ही चर्चा थी कि इतने का घोटाले हुआ। इन सबके बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया था। फैसला यह था कि अगर किसी सांसद या विधायक को 2 साल या उससे ज्यादा की सजा मिलती है, तो उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से खत्म हो जाएगी। वो अगला चुनाव भी नहीं लड़ सकेगा। इस फैसले का सबसे बड़ा प्रभाव लालू प्रसाद यादव पर पड़ सकता था। चारा घोटाले में फैसला आने वाला था। लालू की पार्टी उस वक्त यूपीए सरकार का हिस्सा थी। ऐसे में मनमोहन सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अध्यादेश लाई, जिससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी हो जाता। 24 सितंबर 2013 को कांग्रेस सरकार अध्यादेश की खूबियां बताने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाती है। यहां कांग्रेस नेता पत्रकारों से बात ही कर रहे थे कि अचानक राहुल गांधी पहुंच गए। वे कहने लगे ये अध्यादेश बकवास है और इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए।’ उन्होंने अध्यादेश की कॉपी को फाड़ दिया था। यह देखकर कांग्रेस नेता अवाक रह गए। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि अब वे क्या सफाई दें। राहुल गांधी के एंग्री यंगमैन स्वरूप को देखकर यह लगा कि वे भ्रष्टाचार विरोधी छवि गढ़ना चाहते हैं, ताकि यूपीए सरकार का छवि चमकाई जा सके। इसके बाद यह अध्यादेश वापस ले लिया जाता है, लेकिन इससे सरकार की छवि खराब हो जाती है। खासतौर पर मनमोहन सिंह की।
अब खुद फंस गए राहुल
2013 को राहुल ने अध्यादेश फाड़ा और ठीक 10 साल बाद अब राहुल गांधी को सूरत कोर्ट ने मानहानि का दोषी करार देते हुए 2 साल की कैद की सजा सुना दी है। ऐसे में चर्चा है कि अगर ये अध्यादेश पास हुआ होता तो राहुल गांधी पर लोकसभा सदस्यता जाने का खतरा नहीं मंडराता। बहरहाल इस मामले में दोषी पाए जाने के बाद ‘रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल्स एक्ट 1951’ की धारा 8 के तहत राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म हो सकती है। हालांकि उनके पास अभी 30 दिन में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता खुला हुआ है।
राहुल गांधी ने एंग्री यंगमैन बनकर फाड़ा था अध्यादेश.. अब उन्हीं पर मंडराया खतरा
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