Homeएमपी चुनाव 2023पनागर कभी था कांग्रेस का अभेद्य किला,अब नहीं मिल रहा मजबूत प्रत्याशी

पनागर कभी था कांग्रेस का अभेद्य किला,अब नहीं मिल रहा मजबूत प्रत्याशी

  • 1980 से 2003 तक अजजा के लिए सीट थी आरक्षित
  • परमानंद भाई पटेल ने 1952 से 1967 तक लगातार जीतकर बनाई थी हैट्रिक

जबलपुर। जिले का पनागर विधानसभा क्षेत्र अतीत में दिग्गजों का मुख्य चुनाव क्षेत्र हुआ करता था। देश के आजाद होने और संविधान को अंगीकार किए जाने के दो साल बाद 1952 में हुए मध्यप्रदेश के पहले चुनाव में पनागर विधानसभा क्षेत्र से जबलपुर के बीड़ी उद्योगपति परमानंद भाई पटेल कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते थे। उन्होंने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और 1952,1957,1962 और 1967 का चुनाव जीतकर हैट्रिक भी बनाई थी। 1972 में परमानंद भाई को सिहोरा शिफ्ट कर दिया गया था और पनागर से गिरवर सिंह पटेल ने चुनाव जीतकर कांग्रेस के गढ़ को बचाए रखा था। कमोवेश 1977 की कांग्रेस विरोधी लहर में भी कांग्रेस के डीपी पाठक ने गढ़ को बनाए रखा।

तदोपरांत 1980 के चुनाव से लेकर 2003 के विधानसभा चुनाव तक पनागर सीट अजजा वर्ग के लिए आरक्षित रही। इस दौरान भी कांग्रेस के भीष्मशाह जू देव 1980 और 1985 में यहां से जीते। 1998 में कांग्रेस की ही कौशिल्या गोंटिया यहां से जीत दर्ज कराकर दिग्विजय सिंह मंत्रीमंडल में बतौर राज्यमंत्री रह चुकी हैं। बीच के समय यानी 1990 और 1993 में पत्रकार से नेता बने मोती कश्यप भी चुनाव जीते हैं। 2008 में पनागर जनरल सीट हो गई और भाजपा के नरेंद्र त्रिपाठी ने यहां जीत दर्ज कराई। बीजेपी के सुशील कुमार तिवारी ‘इंदू’ दो बार यहां से चुनाव जीते हैं और तीसरी बार पुनः हैट्रिक बनाने की तैयारी कर रहे हैं। कांग्रेस को मजबूत प्रत्याशी की दरकार है,तभी वह बीजेपी को टक्कर दे सकती है।

आंकड़े क्या कहते हैं, 2008 में जीत जाती कांग्रेस!

पनागर विधानसभा चुनाव के पिछले तीन चुनावों के आंकड़े देखने से पता चलता है कि यहां से भाजपा और कांग्रेस दोनों को भितरघातियों ने नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है मगर भाजपा इससे अछूती ही रही और कांग्रेस को नुकसान पहुंचा है। 2008 के चुनाव में बीजेपी के नरेंद्र त्रिपाठी को जिताने का पूरा श्रेय बसपा से चुनाव लड़ने वाले वर्तमान कांग्रेस नेता बीरेंद्र चौबे को जाता है, जिन्होंने न केवल बसपा के परंपरागत वोट तो लिए ही थे बल्कि अपने ब्राह्मण समाज के भी काफी वोट बटोरे थे। त्रिपाठी को जहां 41,452 मत मिले वहीं कांग्रेस की विजयकांति पटेल को 26,332 वोट ही मिले और कांग्रेस की टिकट न मिलने पर बसपा से चुनाव मैदान में उतरे बीरेंद्र चौबे को 15,120 वोट मिल गए।यदि बीरेंद्र चौबे कांग्रेस का समर्थन करते अथवा उन्हें टिकट मिलती तो थोड़ा और जोर लगाने पर कांग्रेस चुनाव जीत सकती थी। क्योंकि कांग्रेस और बीरेंद्र चौबे को मिले 41,452 वोट जोड़ दें तो बराबरी की चुनावी लड़ाई होती।

2013 और 2018 के चुनावी समर पर नजर

उधर 2013 के चुनावी रिजल्ट को देखें तो बीजेपी के इंदू तिवारी को लगभग 29000 वोटों की लीड मिली। इस चुनाव में कांग्रेस को 54,404 मत और बसपा को 5169 वोट मिले। पिछले चुनाव 2018 में बीजेपी के इंदू तिवारी को भाजपा के ही पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष भारत सिंह यादव ने टिकट से वंचित किए जाने की सूरत में निर्दलीय चुनाव लड़कर हराने का प्रयास किया और दूसरे नंबर पर रहे। इस चुनाव में इंदू तिवारी को मिले 84,302 मतों के मुकाबले 42,569 मतों पर सेंधमारी की। जबकि कांग्रेस की स्थिति तीसरी रही और सम्मति सैनी को 40629 मत ही मिल पाए। चौथे स्थान पर जवाहर अहिरवार ने 7209 वोट लिए।

ये वोट यहां निर्णायक रहते हैं

पनागर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास पलटकर देखें तो इस क्षेत्र में ब्राह्मणों का वोट असरकारी है। इसके बाद ठाकुर, कुर्मी,लोधी,यादव और अजा/जजा के वोट हैं।

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