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Jabalpur Commissioner आवास के 202 साल पूरे, साढ़े 22 हजार में बना था, भूकंप भी नहीं डिगा पाया

  • 1857 की क्रांति में अंग्रेजों ने इसी भवन में छिपकर बचाई जान, 26 एकड़ का था परिसर

जबलपुर। जबलपुर कभी आजादी का केंद्र रहा था। झंडा सत्याग्रह यहीं से शुरू हुआ। कमानिया गेट सहित कई ऐसी धरोहरें हैं, जो हमें आजादी की याद दिलाती हैं। अंग्रेजों ने उस समय कई भवनों का निर्माण कराया। इनमें से एक है कमिश्नर क आवास। इस आवास को बेजोड़ कारीगरी का नमूना कहा जा सकता है। एक अप्रैल को इस आवास के 202 साल पूरे हो गए हैं। इस आलीशान बंगले का निर्माण भी अंग्रेजों ने करवाया था। अंग्रेजी शासन के कमिश्नर पहले इसमें रहते थे। अब यह संभागीय कमिश्नर का आवास है। 1821 में निर्मित कमिश्नर रेसीडेंसी भारत में सबसे पुरानी अधि‍कारिक आवासीय बंगलों में से एक है। इस बंगले का उपयोग अभी भी हो रहा है। खास बात यह है कि मराठों से जबलपुर शहर को जीतने के तुरंत बाद अंग्रेजों ने अपनी तरह की यह पहली इमारत बनवाई थी।
स्लीमन का था निवास
यह इमारत प्रसिद्ध मेजर विलियम हेनरी स्लीमन का निवास भी रहा। उनका नाम इसलिए भी इतिहास में दर्ज है क्योंकि उन्होंने 1830 से 1840 दशक में मध्य भारत में ठगों और पिंडारियों का सफाया किया था। स्लीमन 5 मई 1843 से 3 अक्टूबर 1848 तक जबलपुर के कमिश्नर रहे। विलियम स्लीमन के सार्वजनिक कर्त्तव्य की याद में उनके भतीजे जे. स्लीमन ने क्राइस्ट चर्च कैथेड्रल में उनके सम्मान में एक पट्टि‍का लगवाई है। विलियम स्लीमन ने जिस जगह से पिंडारियों का उन्मूलन किया, उस स्थान का नाम उनके नाम से ‘स्लीमनाबाद’ किया गया।
पहले कमिश्नर मोलोनी यहां रहे
इतिहासकारों की मानें तो 1818 में जब अंग्रेजों ने जबलपुर पर कब्जा किया, तब सीए मोलोनी को यहां का पहला कमिश्नर बनाया गया। मोलोनी कार्यकाल में कमिश्नर कार्यालय की नींव रखी गई। इसका निर्माण 1818 से प्रारंभ होकर 1821 में पूरा हुआ। 1861 तक नर्मदा और सागर टेरेटरीज का मुख्यालय सागर रहा। सेंट्रल प्रावेंस एंड बरार बनने पर नागपुर राजधानी बनी, तब नर्मदा टेरेटरीज का मुख्यालय जबलपुर बनाया गया। कमिश्नर गवर्नर जनरल का प्रतिनिधि होता था, इसलिए इस भवन को रेसीडेंसी भी कहा जाता था।
भव्य बंगला, जिसका 26 एकड़ का था परिसर
कमिश्नर आवास की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इमारत का पूरा परिसर 26 एकड़ का रहा है। इमारत को आयोनक, क्लासिक और ग्रीक शैली में बनाया गया। पूरा भवन चूना पत्थर और ईंट से बना है। भवन के सामने के हिस्से में चार सपाट पिलर और उसके बाद ऊंची छत इसकी विशेषता है। उस समय मुख्य भवन में 22 हजार 592 रुपए की लागत आई थी। चहारदीवारी, घुड़साल और स्टोर बनाया गया, जिसमें 5 हजार 457 रुपए अतिरिक्त खर्च हुए। वर्तमान में जो कमिश्नर कार्यालय है, उसका निर्माण 1904 में हुआ है। इस पर 16 हजार 590 रुपए का खर्च हुआ। इस भवन में वास्तु संबंधी कमियां नाममात्र भी नहीं है। 22 मई 1997 को आए भयंकर भूकंप में इस भवन में मामूली क्षति हुई थी।
1857 की क्रांति का गवाह बना
यह आवास 1857 की क्रांति का भी गवाह रहा। विद्रोह के दौरान जबलपुर कमिश्नर आवास केंद्र बिन्दु था। डब्ल्यूसी अरशाइन तब जबलपुर के कमिश्नर थे। उनके कार्यकाल में भारतीय सिपाहियों ने बैरक में अपने अंग्रेज ऑफ‍सिरों पर हमला करना शुरू कर दिया था। अरशाइन ने मुसीबत की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया। रेसीडेंसी में जल्दबाजी में सैंड बैग (रेत की बोरियों) और दो पुरानी तोपों का इंतजाम कर बचाव का रास्ता निकाला गया। भारतीय विद्रोहियों ने रेसीडेंसी की घेराबंदी कर ली, जिसमें छावनी और सि‍विल स्टेशन के सभी अंग्रेज और यूरोपीय परिवार रेसीडेंसी में सुरक्षा की दृष्टि से एकत्र हो गए थे। रेसीडेंसी में एक भूमिगत मार्ग मौजूद था जो बॉल रूम के लकड़ी के फर्श से बाहर निकलता था। यह बहुत दूर तक नहीं जाता था। रेसीडेंसी में अंग्रेज और यूरोपीय परिवार तब तक डटे रहे, जब तक भारत की स्वतंत्रता के पहली लड़ाई या विद्रोह को दबा नहीं लिया गया।
रेसीडेंसी में लिए गए बड़े फैसले
इतिहासकारों का कहना है कि अंग्रेजी दौर के कमिश्नर यूं तो गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि होते थे। उनके पास बड़े-बड़े फैसले लेने के अधिकार थे। गढ़ा गोंडवाना के अंतिम शासक शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह को तोप से उड़ाने की सजा का फैसला इसी भवन में लिया गया था। आजादी की लड़ाई में सैकड़ों सेनानियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की इबारत भी यहीं लिखी गई।
वेटरनरी कॉलेज को मिली जगह
देश की आजादी के बाद कमिश्नर का पद समाप्त कर दिया गया। नवंबर 1956 में नया मध्यप्रदेश बनने के बाद जबलपुर का प्रथम कमिश्नर आईसीएस आरसीवीपी नरोन्हा को बनाया गया। सी. बर्नार्ड पहले आईसीएस थे जो जबलपुर के कमिश्नर बने। कमिश्नर कार्यालय को आवासीय परिसर में बदल दिया गया। सामने बने भवन को कमिश्नर कार्यालय बनाया गया। रेसीडेंसी का उद्यान वर्तमान वेटरनरी कॉलेज तक विस्तारित था। 1948 और 1956 के बीच जब कमिश्नरी को समाप्त किया गया था, तब रेसीडेंसी को वेटरनरी कॉलेज के रूप में उपयोग में लाया गया। कमिश्नर आवास की 26 एकड़ भूमि के अधिकांश हिस्से में वेटरनरी कॉलेज बना दिया गया, जो वर्तमान में वेटनरी विश्वविद्यालय है।

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