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चैत्र नवरात्रि : स्कंद माता के पुत्र स्कंदकुमार ने तारकासुर का वध करके की थी धर्म की स्थापना

  • सफलता और मोक्ष की प्राप्ति के साथ पापों से मुक्ति दिलाती हैं स्कंदमाता

जबलपुर। 26 मार्च को चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। शेर पर सवार मां स्कंदमाता चार भुजाओं वाली देवी हैं। वे हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और गोद में उनके पुत्र स्कंदकुमार हैं। स्कंद कुमार की माता होने के कारण देवी का नाम मां स्कंदमाता है। स्कंद कुमार भगवान कार्तिकेय को कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार तारकासुर के वध के लिए देवी ने 6 मुखवाले स्कंद कुमार की उत्पत्ति की। स्कंदकुमार ने तारकासुर का वध करके धर्म स्थापना की। जो लोग संतानहीन हैं, उन लोगों को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। स्कंदमाता की आराधना से संतान की प्राप्ति होती है। देवी स्कंदमाता दुखों को दूर करने वाली, परिवार के खुशहाली और सुखी जीवन के लिए भी स्कंदमाता की पूजा की जाती है। कार्यों में सफलता और मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी स्कंदमाता की आराधना की जाती है। स्कंदमाता की कृपा से पाप भी दूर हो जाते हैं।
ये हैं पूजा के मुहूर्त
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि शाम 04 बजकर 32 मिनट तक है। प्रात:काल से प्रीति योग है, जो रात 11 बजकर 33 मिनट तक है। उसके बाद से आयुष्मान योग प्रारंभ होगा। रवि योग दोपहर 02 बजकर 01 मिनट से कल सुबह 06 बजकर 18 मिनट तक है।
यह है पूजा विधि
स्नान के बाद मां स्कंदमाता की पूजा करें। मां स्कंदमाता को लाल पुष्प जैसे गुड़हल, गुलाब, अक्षत्, कुमकुम, धूप, दीप, नैवेद्य, गंध आदि चढ़ाएं। मां स्कंदमाता के मंत्रों का उच्चारण करें। इसके बाद माता को केले और बताशे का भोग लगाएं। उनके बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं। कपूर या घी के दीपक से स्कंदमाता की आरती करें। इसके बाद अपनी मनोकामना देवी के समक्ष व्यक्त करें।

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