दो माह ही पद पर रहे, सीपी एंड बरार के मुख्यमंत्री भी रहे पं. रविशंकर शुक्ल, जबलपुर, रायपुर और नागपुर में शिक्षा प्राप्त की
भोपाल। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल की 31 दिसंबर को पुण्यतिथि है। सागर में जन्मे रविशंकर शुक्ल मात्र दो माह ही मुख्यमंत्री रह पाए। 1 नवंबर 1956 को उन्होंने राजधानी भोपाल में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 31 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया। वे 80 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री बने थे। आईए जानते हैं उनका जीवन परिचय-
शिक्षक थे, फिर वकील बने
पंडित रविशंकर शुक्ल का जन्म 02 अगस्त, 1877 को सागर नगर में हुआ था। उन्होंने बी.ए., एल.एल.बी. की शिक्षा रायपुर, जबलपुर और नागपुर में प्राप्त की। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे तीन वर्ष तक खैरागढ़ राज्य के हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक तथा बस्तर कवर्धा एवं खैरागढ़ के राजकुमारों के शिक्षक रहे और सन 1906 में उन्होंने रायपुर में वकालत प्रारंभ की। प्रारम्भ से ही उनको सार्वजनिक कार्यों के प्रति रूचि थी और सदा जनहित के कार्यों में जुटे रहते थे।
असहयोग आंदोलन में कूदे
महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने पर वे अपनी अच्छी वकालत को छोड़कर राजनीति के क्षेत्र में क्रियात्मक रूप से उतर आये और गिरफ्तार कर लिये गये परन्तु बाद में छोड़ने के लिये सरकार को बाध्य होना पड़ा। सन् 1930 में उन्हें तीन साल की सजा हुई और सन 1932 में सजा के साथ-साथ आप पर पांच सौ रूपये जुर्माना हुआ। उनका नाम वकीलों की सूची से हटा दिया गया, परन्तु सन 1935 में उन्होंने फिर वकालत करने की आज्ञा प्राप्त कर ली.
ऐसा रहा सियासी सफर
सन् 1923 में वे स्वराज्य पार्टी की ओर से सभा के सदस्य चुने गये। 1926 से 1937 तक वे रायपुर जिला बोर्ड के सदस्य रहे. सन् 1936 में प्रान्तीय धारा सभा के चुनाव में बहुमत से कांग्रेस की विजय हुई और डॉक्टर एन.बी. खरे के नेतृत्व में मंत्रिमण्डल बना। वे शिक्षा मंत्री बने और विद्यामंदिर योजना का सूत्रपात किया जिसकी प्रशंसा महात्मा गांधी ने की थी। वास्तव में शिक्षा के क्षेत्र में यह एक नया प्रयोग था। डॉक्टर खरे के मंत्रिमण्डल में मतभेद होने के कारण केन्द्रीय पार्लियामेन्ट्री बोर्ड को हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होना पड़ा और डॉ. खरे के त्यागपत्र देने पर पंडित रविशंकर शुक्ल मुख्यमंत्री चुने गये और सफलता के साथ अगस्त 1938 से 10 नवंबर, 1939 तक मुख्यमंत्री का कार्य किया। परन्तु सन् 1939 में द्वतिय महायुद्ध में अंग्रेजों की सहायता न करने का निर्णय करने के कारण अन्य कांग्रेसी प्रांतों के मंत्रिमंडलों की भांति नवंबर 1938 को उन्होंने मध्यप्रदेश मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया और प्रांत के अन्य नेताओं के साथ भी राष्ट्रीय आंदोलन में संलग्न हो गये। अवज्ञा भंग के अपराध में सन् 1940 में उन्हें पुनः जेल जाना पड़ा। इसी प्रकार अगस्त 1942 को ’भारत छोड़ो’ आंदोलन में सक्रिय भाग लेने पर उनकी फिर गिरफ्तारी हुई।
प्रथम आम चुनावों के बाद मध्यप्रदेश में सरकार बनी
2 सितंबर, 1945 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अन्तःकालीन शासन की स्थापना हुई, जिसमें बाद में मुस्लिम लीग भी सम्मिलित हो गयी थी। इस समय प्रान्तों में भी कांग्रेस सरकारों की स्थापना हुई और उनके नेतृत्व में मध्यप्रदेश में भी कांग्रेसी मंत्रिमंडल बना। सन् 1952 में प्रथम आम चुनावों के बाद मध्यप्रदेश में पं. शुक्ल के नेतृत्व में फिर सरकार स्थापित हुई। राज्य पुर्नगठन के पश्चात् जिस नये मध्यप्रदेश का निर्माण 1 नवम्बर 1956 को हुआ था, जिसके वे सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री बनाये गये। दिनांक 31 दिसम्बर 1956 को उनका देहावसान हो गया।