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JABALPUR : 100 साल पहले आज ही के दिन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ फहराया गया था तिरंगा झंडा

प्रथम झंडा सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष, 18 मार्च 1923 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सुंदरलाल तपस्वी के नेतृत्व में निकाला गया था जुलूस

जबलपुर। 18 मार्च 1923 का वह दिन जब जबलपुर से सत्याग्रह आंदोलन की चिंगारी सुलगी थी। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तत्कालीन सभापति तत्कालीन कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष व अन्य क्रांतिकारियों के नेतृत्व में नगर पालिका भवन वर्तमान के टाउन हाल में तिरंगा झंडा फहराया गया था। दरअसल 18 मार्च 1923 के दिन महात्मा गांधी जी के कारावास यात्रा की सालगिरह थी। उस समय के तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सुंदरलाल तपस्वी के नेतृत्व में निकाले गए जुलूस में शामिल अनेक आजादी के दीवाने क्रांतिकारियों में से चार उत्साही नौजवान क्रांतिकारी साथियों ने पुलिस को चकमा देकर नगर पालिका भवन वर्तमान के टाउन हाल में चढ़कर राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया था।
110 दिन तक चला सत्याग्रह, 1265 सत्याग्रही जेल गए
जबलपुर से प्रारंभ झंडा सत्याग्रह संयुक्त मध्य प्रदेश की राजधानी नागपुर से पूरे प्रदेश में चलाया गया। यह सत्याग्रह 110 दिनों तक चला जिसमें 1265 सत्याग्रही हिंदी भाषा क्षेत्र मध्य प्रदेश से शामिल हुए। अनेक क्रांतिकारी इस आंदोलन में जेल गए। इस सत्याग्रह आंदोलन में जबलपुर से तीन जत्थे गए जिनका नेतृत्व विश्वम्भर नाथ पांडे, सुभद्रा कुमारी चौहान और माखनलाल चतुर्वेदी ने किया था। इस इस प्रकार राष्ट्रीय झंडे की मान रक्षा के लिए किए गए संघर्ष के उत्तरदायित्व का सौभाग्य मध्यप्रदेश में नागपुर को मिलने के पूर्व संस्कारधानी जबलपुर को प्राप्त हुआ था।
पूरे देश में फैली गई थी चिंगारी
जबलपुर टाउन हॉल उस समय और चर्चित हो गया, जब झंडा सत्याग्रह की शुरूआत यहाँ से हुई। म्युनिसिपल कमेटी के अध्यक्ष कन्छेदीलाल जैन ने डिप्टी कमिश्नर हैमिल्टन से टाउन हॉल में झंडा फहराने की अनुमति मांगी। अनुमति नहीं मिलने पर जनता ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया, जिसे झंडा सत्याग्रह का नाम दिया गया। नागपुर और जबलपुर का झंडा सत्याग्रह 1923 में हुआ था। सरदार वल्लभभाई पटेल, जमनालाल बजाज, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी , डॉ राजेंद्र प्रसाद,बाबू कंछेदीलाल जैन और विनोबा भावे जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने विद्रोह का आयोजन किया और दक्षिण-पश्चिम में त्रावणकोर राज्य की रियासत, नागपुर और अन्य हिस्सों की यात्रा के दौरान विभिन्न क्षेत्रों के हजारों लोगों का आयोजन किया। अंत में अंग्रेजों ने पटेल और अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ एक समझौते पर बातचीत की, जिन्होंने प्रदर्शनकारियों को अपने मार्च का संचालन करने और गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को रिहा करने की अनुमति दी।

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